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Kanak Dhara Stotram (Hindi) – कनकधारा स्तोत्र

कनकधारा स्तोत्र kanak dhara

आदि शंकराचार्य जब छोटे बालक थे, एक बार भिक्षा मांगते समय एक अत्यंत निर्धन स्त्री ने उन्हें एक सुखी आँवला (सूखा आँवला) भेंट किया। शंकराचार्य उस स्त्री की निश्छल भक्ति और स्थिति से अत्यंत प्रभावित हुए और उन्होंने माँ लक्ष्मी से उस स्त्री के लिए प्रार्थना करते हुए यह स्तोत्र रचा।

माँ लक्ष्मी उस स्तोत्र से प्रसन्न होकर सोने की धारा (कनकधारा) (Kanak Dhara) के रूप में उस स्त्री के घर पर स्वर्ण वर्षा कर देती हैं। उसी दिन से यह स्तोत्र “कनकधारा स्तोत्र” कहलाया।

कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से क्या होता है?

।। श्री कनकधारा स्तोत्रम् ।।

  1. जैसे भ्रमर अधखिले पुष्पों से सजे तमाल वृक्ष की छाया खोजता है, वैसे ही जो प्रकाश श्रीहरि के रोमांचित अंगों को आलोकित करता है और जिसमें सम्पूर्ण ऐश्वर्य का वास है, ऐसी कल्याणकारी श्री महालक्ष्मी की दृष्टि मुझ पर बनी रहे।
  2. जैसे भ्रमर सुंदर कमल दल पर मँडराता है, वैसे ही जो दृष्टि श्रीहरि के कमलमुख की ओर स्नेह से जाती है और फिर लज्जा से लौट आती है, समुद्रपुत्री लक्ष्मी की वह मनोहर दृष्टि मुझे धन-समृद्धि प्रदान करे।
  3. जो देवाधिपति इन्द्र के वैभव को भी सहजता से दे सकती हैं, श्रीहरि को आनंदित करती हैं और नीलकमल के अंतरभाग जैसी सुंदरी हैं उन श्रीलक्ष्मी के अधखुले नेत्रों की एक झलक भी मुझ पर पड़े।
  4. शेषनाग पर शयन करने वाले श्रीहरि की अर्धनिमीलित दृष्टि से उन्हें निहारती, किंतु लज्जावश तिरछी दृष्टि डालने वाली लक्ष्मी के नेत्र मुझे ऐश्वर्य प्रदान करें।
  5. जो मधुसूदन के कौस्तुभ से सजे वक्षस्थल पर इंद्रनील हार की भाँति शोभायमान हैं और भगवान के हृदय में भी प्रेम की तरंगें उत्पन्न करती हैं ऐसी कमलवासिनी लक्ष्मी की कृपादृष्टि मेरा कल्याण करे।
  6. जैसे मेघों में विद्युत चमकती है, वैसे ही जो भगवान विष्णु के श्याम-वर्ण वक्षस्थल पर प्रकाशित होती हैं, भृगुवंश को प्रसन्न करती हैं और समस्त लोकों की जननी हैं ऐसी लक्ष्मी का स्मरण मुझे शुभफल दे।
  7. समुद्रपुत्री लक्ष्मी की वह धीमी, आलस्यपूर्ण, अर्धनिमीलित दृष्टि, जिसके कारण ही कामदेव ने मधुसूदन के हृदय में स्थान पाया वह दृष्टि मुझ पर पड़े।
  8. नारायण प्रेयसी लक्ष्मी की कृपादृष्टि, दुष्कर्म रूपी अंधकार को हर ले और दीनता रूपी प्यासे चातक पर धन वर्षा की अमृतधारा बरसाए।
  9. जिनकी कृपा दृष्टि विशिष्ट जनों को स्वर्ग तुल्य पद प्राप्त कराती है, वही पद्मासना लक्ष्मी की कांतिमयी दृष्टि मुझे मनचाही पुष्टि प्रदान करे।
  10. जो सृष्टिकाल में वाग्देवी, प्रलयकाल में दुर्गा या पार्वती के रूप में प्रकट होती हैं, नारायण की सदा यौवनशील प्रिया लक्ष्मी को मेरा बारंबार प्रणाम।
  11. हे माता! आप शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति स्वरूपा हैं, गुणों की सागर रति स्वरूपा हैं, कमलवन में वास करने वाली शक्ति हैं और पुष्टि रूपी श्रीहरि प्रिया हैं, आपको प्रणाम।
  12. कमलमुखी लक्ष्मी को नमस्कार, क्षीरसागर पुत्री श्रीदेवी को नमस्कार, चंद्रमा और अमृत की बहन को प्रणाम, भगवान नारायण की वल्लभा को प्रणाम।
  13. हे कमलनयनी माताजी! आपके चरणों की वंदना मुझे संपत्ति, आनंद, साम्राज्य और पापों से मुक्ति प्रदान करे, मैं सदा उसी की शरण चाहता हूँ।
  14. जिस लक्ष्मी की उपासना से उपासक के सारे मनोरथ और संपत्तियाँ पूर्ण होती हैं, उस श्रीहरि हृदयेश्वरी का मैं मन, वाणी और शरीर से भजन करता हूँ।
  15. हे हरिप्रिया लक्ष्मी! तुम कमलवन में वास करती हो, तुम्हारे कर में नीलकमल है, उज्ज्वल वस्त्र, सुगंध और आभूषणों से अलंकृत तुम्हारी मूर्ति अत्यंत मनोहारी है, कृपया मुझ पर प्रसन्न होओ।
  16. जिनके अंगों पर दिग्गजों द्वारा स्वर्ण कलशों से गिरी आकाशगंगा की निर्मल जलधारा से स्नान कराया जाता है, क्षीरसागर पुत्री, भगवान विष्णु की पत्नी, उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रातः प्रणाम करता हूँ।
  17. हे कमले! मैं निर्धन और दीन मनुष्य हूँ तुम्हारी कृपा के योग्य हूँ। अपने करुणा-तरंगित कटाक्ष से मुझ पर कृपा करो।
  18. जो मनुष्य प्रतिदिन इन स्तुतियों से त्रिभुवनजननी लक्ष्मी की आराधना करते हैं, वे पृथ्वी पर महान, सौभाग्यशाली और विद्वानों के लिए भी प्रेरणा बन जाते हैं।

कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने से धन, समृद्धि, सुख-शांति और भाग्य में वृद्धि होती है। यह स्तोत्र माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने वाला अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है।

संस्कृत में कनकधारा स्तोत्र

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